प्रायः लोग जीवित रहते कुछ न कुछ समाजसेवा करते ही हैं; पर मृत्यु के बाद भी देहदान, अंगदान एवं नेत्रदान के रूप में यह सेवा संभव है । दधीचि देहदान समिति यही काम कर रही है। यह 1997 से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर) में कार्यरत है। इंटरनेट पर इसका विवरण उपलब्ध है।
जहां सरकारी मैडिकल कॉलिज हैं, वहां इसका गठन हो सकता है। 27 फरवरी, 2022 को देहरादून में भी इसकी स्थापना हुई है। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील श्री आलोक कुमार जी इसके संस्थापक एवं संरक्षक हैं। यह समिति दानदाता और सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बीच सेतु का काम करती है।
नेत्रदान – भारत में लाखों लोग आंखों के अभाव में अंधकारमय जीवन जी रहे हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे और युवा हैं| नेत्रदान उन्हें इस सुंदर संसार में वापस ला सकता है। यह बहुत आसान भी है। मृत्यु के बाद चार से छह घंटे तक आंखें ठीक रहती हैं। इस दौरान प्रशिक्षित डॉक्टर घर आकर आंखों से एक छोटा सा भाग (कॉर्निया) लेकर उसे सुरक्षित कर लेते हैं। इसमें 15–20 मिनट लगते हैं तथा चेहरा भी खराब नहीं होता। यह कॉर्निया ही किसी नेत्रहीन की आंखों में लगकर उसका जीवन प्रकाशित कर देता है। नेत्रदान के बाद अपने रीति-रिवाज से अंतिम क्रिया कर सकते हैं।
देहदान – मैडिकल के छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए मानव देह (कैडेवर) की जरूरत होती है। जैसे किसी मशीन की आंतरिक संचरना को किताब, चित्र या फिल्म से नहीं समझ सकते। यही स्थिति मानव देह की भी है। दान से प्राप्त देह को रसायनों द्वारा संरंक्षित कर इस काम में लिया जाता है| चार छात्रों के प्रशिक्षण के लिए एक कैडेवर चाहिए; पर इसके अभाव में 25-30 छात्र एक कैडेवर से काम चलाते हैं | इसका प्रतिकूल असर उनकी योग्यता पर पड़ता है।
इसके अतिरिक्त अनुसंधान तथा नयी तकनीक के विकास के लिए वरिष्ठ सर्जन कैडेवर पर लगातार प्रयोग करते रहते हैं। इस प्रकार देहदान मैडिकल छात्रों की पढ़ाई, कठिन ऑपरेशन के अभ्यास तथा नये अनुसंधान के लिए अति आवश्यक हो जाता है। कुछ बच्चे अनेक शारीरिक / मानसिक विकृतियों के साथ पैदा होते हैं। उनकी जीवनयात्रा भी छोटी ही होती है। कुछ लोग अज्ञात बीमारी से मरते हैं। ऐसे लोगों की देह शोध कार्य में बहुत उपयोगी होती है।
मृत्यु के बाद सभी नाते-रिश्तेदारों के आने पर देहदान होता है। इस दौरान देह को बर्फ पर या बिजली के बक्से में रख देते हैं, जिससे वह खराब न हो | देहदान के बाद किसी पुतले /पिंड आदि का प्रतीकात्मक दाह संस्कार तथा अन्य धार्मिक सामाजिक क्रियाएं परम्परा के अनुसार कर सकते हैं।
(विशेष : कुष्ठ / कोरोना पीड़ित तथा पुलिस केस वाली देह स्वीकार नहीं की जाती)
अंगदान – कभी-कभी सिर में भीषण चोट से व्यक्ति का मस्तिष्क निष्क्रिय (ब्रेन डैड) हो जाता है। दिमाग में ऑक्सीजन न पहुंचने के कारण अब उसका ठीक होना संभव नहीं होता। वरिष्ठ डॉक्टर गहन जांच के बाद यह घोषणा करते हैं| ऐसे में परिजन उसके स्वस्थ अंग दान कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति की आंख, कान, नाक, लीवर, फेफड़े, दिल, अस्थियां, अस्थि मज्जा, त्वचा, बाल… आदि किसी रोगी के काम आ जाते हैं। यही ‘अंगदान’ है। अंगों का प्रत्यारोपण कई जगह होता है; पर उन्हें सुरक्षित रखने की व्यवस्था केवल दिल्ली, चंडीगढ़ और बंगलुरू में ही है।
दान की प्रक्रिया
इसके लिए दानदाता को एक प्रपत्र (फॉर्म) भरना होता है, जिस पर नाम, जन्मतिथि, पता, आधार नंबर, मोबाइल नंबर लिखा जाता है। उसके अपने, एक वयस्क रक््तसंबंधी तथा एक गवाह के हस्ताक्षर भी जरूरी हैं। इसके बाद समिति दान का संकल्प पत्र देती है। बिना प्रपत्र भरे भी नेत्र / देहदान किया जा सकता है।
अनेक धर्मगुरुओं ने नर सेवा को नारायण सेवा और मानव सेवा को ही माधव सेवा बताते हुए इसे “’महादान’ कहा है। क्योंकि इससे मृत्यु के बाद भी शरीर समाज के काम आता है। इससे मृतक को सद्गति मिलती है और उसे स्थायी रूप से प्रभु चरणों में स्थान मिलता है। आइए, मानवता की सेवा के इस महान काम में हाथ बंटाएं।
नेत्रदान की प्रक्रिया :
देहदान की प्रक्रिया :
अंगदान की प्रक्रिया : डाक्टरों द्वारा ब्रेन डैड घोषित होने पर समिति को सूचना दें | अगली कार्यवाही तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार की जाएगी।
अन्य उपयोगी जानकारी: