लीना आनंद की तस्वीर की मुस्कुराहट उनके जीवन में फैली आनंद और खुशीयों को दर्शाती है। राजेश आनंद से लीनाजी की मुलाकात 25 साल पहले, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हुई थी, जहाँ वे एक साथ काम करते थे। दोस्ती प्रेम में बदल गई और वे विवाह के बंधन में बँध गये। 23 सालों के विवाहित जीवन में उन्होनें कई उतार-चढ़ाव देखें, लेकिन लीनाजी ने परिवार को बाँधे रखा। उनका बेटा रितेश खाने का शौकीन था, वे पाक कला में निपुर्ण थी और नित नये पकवान उसके लिये बनाती रहती। राजेश ने बताया कि ‘वे बहु-आयामी, ऊर्जावान और आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन थी। वे घर- व्यवसाय सब कुछ सहजता से संभालती थी।’
एक दिन जब वह सामान्य दिनचर्या के काम के दौरान बेहोश हो गई, तो उन्हें यह पता नहीं था कि अब उनके परिवार का कठिन समय शुरू हो गया था। हालाँकि उनका माइग्रेन का इतिहास था, लेकिन इसकी कभी भी पुनरावृत्ति नहीं हुई थी। शुरुआती दिनों में उनके लक्षणों को सिर का चक्कर माना गया। लेकिन वे 3 महीनों में जब वह तीसरी बार गिर गई थी, तो राजेशजी ने जोर दे कर एम.आर.आई करवाया और परिवार को लीना के ‘ऐन्युऱिज्म़ या धमनीविस्फार’ से पीड़ित होने की खबर मिली । लीनाजी के डॉक्टर भाई से परामर्श करने के बाद, उन्हें डॉ. विपुल गुप्ता की निगरानी में 11 जुलाई, 2015 को मेदांता द मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया। एन्यूरिज्म की जटिलताओं को नियंत्रित करने के लिए कई सफल ऑपरेशन किए गए। वह जब डिस्चार्ज होने वाली थीं तब वह एक बार फिर से अपने अस्पताल के कमरे के बाथरूम में गिर गईं। गिरने से उनकी धमनीयाँ फट गई और 4 अगस्त 2015 को उन्हें मस्तिष्क- मृत घोषित कर दिया गया।
मोहन फाउंडेशन के कॉड़ीनेटर ने जब राजेशजी से अंग-दान की बात की तो उन्होंने कहा कि उनका परिवार पहले से ही अंग दान की अवधारणा से अवगत हैं। जब उन्होंने फिल्म “शिप ऑफ थिसस” देखी थी, तब लीना ने राजेशजी को अपनी इच्छा व्यक्त करते हुये कहा था कि ‘यह कुछ ऐसी परिस्थिति हुई तो वह अंग-दान करना पसंद करेगी।‘
हालाँकि वह एक पढ़ा-लिखा परिवार था और लीना डॉक्टरों के परिवार से आती थी, लेकिन उनके भाई ने कहा कि “मैं अभी भी अपनी बहन को एक सप्ताह देना चाहूंगा।” मोहन फाउंडेशन के कॉड़ीनेटर ने उनके निर्णय को सम्मान देते हुये, परिवार को इस दुःख को सहने और निर्णय करने लिये समय दे दिया। ठीक 12 अगस्त 2015 को लीनाजी के भाई ने मोहन फाउंडेशन को फोन कर अंग दान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कहा।
अंग-दान के छह महीने बाद, मोहन फाउंडेशन के प्रतिनिधियों ने राजेशजी से उनके डिफेंस कॉलोनी के घर पर मुलाकात की। आंसू भरी आंखों से राजेशजी ने कहा कि, “मुझे पता है कि लीना अभी भी कहीं उन तीनों लोगों में अपने अंगों के जरिये जीवित है”। उन्होंने प्राप्तकर्ताओं के स्वास्थ के बारे में पूछताछ की। मोहन फाउंडेशन के प्रतिनिधियों ने उन्हें इस संबंध में आश्वस्त किया। प्राप्तकर्ताओं में से एक ने श्री राजेशजी को उनके नेक निर्णय के लिए, जिसने उन्हें जीवन दान दिया, के लिये हार्दिक आभार व्यक्त किया और धन्यवाद दिया । लीना की तस्वीर निश्चितता की भावनाओं को दर्शाती है कि वह अभी भी अपने प्राप्तकर्ताओं में खुशी से जीवित है।